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दिव्य औषधीय, सुगन्धित एवं सौन्दर्यकरण पौध

स्वामी रामदेवजी

प्रकाशक : दिव्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :61
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4831
आईएसबीएन :81-09235-05-2

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औषधीय पौधों के हिन्दी व वानस्पतिक नाम के साथ उनके मुख्य गुणधर्म तथा इनके संरक्षण व उपयोग की जानकारी।

Divya Aushadhiya, Sugandhit Evam Saundarayakaran Paudh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्राक्कथन

‘‘दिव्य योग मंदिर’’ पिछले 9-10 वर्षों से जनसेवा में प्रयासरत है। यह जनसेवा कार्य पिछले कुछ वर्षों से निरन्तर व्यापक होता जा रहा है। इसके दो पहलू विशेष हैं-
(1) आयुर्वेद द्वारा कठिन व जटिल रोगों को उपचार व (2) यौगिक क्रियाओं द्वारा इस चिकित्सा कार्य को और अधिक सक्षम व सर्वसुलभ बनाना। यह सब इस संस्था के विशेष संकल्प के अधीन अग्रसर हो रहा है। यह संकल्प है भारत के जन-जन को स्वस्थ जीवन शैली प्रदान करना। यह पुनीत कार्य दिव्य योग मंदिर द्वारा कई तरह से किया जा रहा है। इसमें उल्लेखनीय हैं-

1. आयुर्वैदिक चिकित्सा कार्य के लिए गुणवत्तायुक्त औषधियों का निर्माण।
2. हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में भ्रमण कर औषधीय पौधों की सही पहचान सुनिश्चित करना।
3. विभिन्न औषधीय पौधों को इकट्ठा करके उद्यान में संरक्षित करना जिससे इन पौधों का औषधीय निर्माण कार्य में उपयोग किया जा सके।
4. सही पहचान वाले पौधों को खेती के रूप में उगाने के कार्यक्रम को क्रियारूप देने का भविष्य में प्रयास।
5. जन-जन को सर्व सुलभ औषधीय पौधों का ज्ञान प्रदान कर उन्हें इन पौधों का संरक्षण करने की चेतना देने का टी.वी. चैनलों के माध्यम से प्रचार एवं प्रसार करना।
6. अधिक उपयोगी पौधों को सुलभ करने का प्रयास आदि।
पूज्य स्वामी रामदेव जी तथा चिकित्सक शिरोमणि वैद्यराज बालकृष्ण जी के इस दिशा में किए गए व किए जा रहे प्रयासों से अधिकांश भारतवासी परिचित हैं। इन प्रयासों को आगे गति देने में बहुत से सहयोगी भी आगे आ रहे हैं।

हरिद्वार में ‘हर्बल गार्डन’ का महत्व तथा ‘दिव्य योग मंदिर’ का जन स्वास्थ्य में औषधीय पौधों को महत्व प्रदान में सहयोग


हर भारतवासी के लिये ‘हरिद्वार’ गहरी धार्मिक आस्था को अन्तर्निहित किये हुये है। इसके अतिरिक्त यह स्थान अतिप्राचीन काल से ही अनेक ऋषि, मुनि व तपस्वी जनों का भी प्रिय स्थान रहा है। यहाँ इन महान् आत्माओं की विशेष अदृश्य करुणा सदैव विद्यमान रहती है। यही नहीं इसके आसपास के जंगलों में अनेकों प्रकार की जड़ी-बूटियाँ सुगमता से प्राप्त हो जाती हैं, जो नैसर्गिक गुणों से भरपूर होती हैं। गंगा जी का पवित्र जल भी इसमें योगदान दे रहा है।

‘दिव्य योग मंदिर’ में चिकित्सा हेतु आने वाले लोगों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जो आजकल 3000 से 4000 तक होती है। इसके अतिरिक्त पूज्य स्वामी रामदेव जी के सानिध्य में पूरे देश में योग शिविर का क्रम थमता नजर नहीं आ रहा है। सुगमता से उपलब्ध होने वाले औषधीय पौधों के विषय में टी.वी. के माध्यम से स्वामी रामदेव जी के द्वारा प्रवचन करने से एक बार फिर जनमानस में एक नयी चेतना व आस्था का संचार होने लगा है। उदाहरण के रूप में अश्वगंधा के पत्तों का शारीरिक भार कम करने की नई खोज व्यापक रूप से सराहना के केन्द्र है, विशेष रूप से जब उसका उपयोग यौगिक क्रियाओं जैसे प्राणायाम (कपालभाती, भस्त्रिका आदि) के साथ करने से अद्भुत 20 किलो तक वजन प्रतिदिन कम करने के परिणाम सामने आए हैं। इसके अतिरिक्त गिलोय, पुनर्नवा, बला, भूंई, आंवला, श्योनाक, दमा बूटी आदि के बारे में जन जागरण विशेष महत्व प्राप्त कर चुका है।

वैद्य शिरोमणि बालकृष्ण जी महाराज ने हेपाटाइटिस-बी व सी के रोगियों, मधुमेह (Diabetes) उच्च रक्तचाप (H.B.P.), जोड़ों के दर्द आदि के कष्टसाध्य रोगियों की सफल चिकित्सा करके, चिकित्सा संसार में व जनमानस में एक नया उत्साह व आस्था का उदय किया है। लोगों में अब पुनः जड़ी-बूटी चिकित्सा के प्रति एक नई आस्था उमड़ पड़ी है। भारत के विभिन्न भागों से लोग केवल जड़ी-बूटी की जानकारी व प्राप्ति के लक्ष्य से ‘दिव्य योग मंदिर’ आश्रम में आ रहे हैं।

सौन्दर्यकरण पौधों का एकत्रीकरण व प्रवर्धन


इस क्षेत्र में भी दिव्य योग मन्दिर तीव्र गति से अग्रसर हो रहा है। बहादराबाद स्थित कृषि क्षेत्र में एक पौधशाला मूर्त्तरूप लेने जा रही है, जो एक उदाहरणीय प्रयास के रूप में उभरने वाली है। इस समय आश्रम के उद्यान में 100-150 प्रजातियाँ गुलदाउदी की, 90-100 प्रजातियाँ डहलिया की, 30-40 प्रजातियाँ गुलाब की, 20-25 प्रजातियाँ ग्लैडियोलाई की, 14-15 प्रजातियाँ वोग्नविलिया तथा अन्य कई प्रकार के फूल संरक्षण के रूप में यहाँ हैं। इस काम में सिद्धहस्त आचार्य मुक्तानन्द जी सराहनीय योगदान देने में संलग्न हैं। आने वाले सयम में इस क्षेत्र में विशेष प्रयास किये जाने की योजना अपने अंतिम रूप में है। पौधशाला में लगभग 50-60 प्रकार के पौधे तैयार किये जा चुके हैं। यह भी जनस्वास्थ से घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है।

वानस्पतिक औषधीय पौधे तथा उनके गुण धर्म व प्रयोग


आयुर्वेद में कुछ अनुमानित 45000 पौधों में से अभी लगभग 1500 पौधे ही ऐसे हैं जिनका औषधीय उपयोग किया जाता है, जबकि आयुर्वेदिक में लगभग 1500 पौधे, कुल अनुमानित 45000 पौधों में से औषधीय में अभी होते हैं, जबकि ऐसा माना जाता है कि धरती पर होने वाला ऐसा कोई पौधा नहीं जो औषधीय गुणयुक्त न हो। यदि हम वैदिक काल के साहित्य का अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि वेदों में व वेदांगो में 105 औषधीय पौधों का उल्लेख मिलता है। चरक संहिता में औषधीय पौधों की संख्या 400 है।

सर्वसाधारण की जानकारी व उत्सुकता के लिए आगे कुछ पौधों के हिन्दी व वानस्पतिक नाम के साथ उनके मुख्य गुणधर्म दिए जा रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य सभी को जड़ी-बूटी सम्बन्धी जानकारी से अवगत कराना है तथा इनके संरक्षण व उपयोग के लिये प्रेरित करना है। हमारे गाँवों में बहुत-सी सर्वसुलभ ऐसी जड़ी-बूटियाँ हैं, जिनके उपयोग से बहुत रोगों का इलाज चमत्कारी असर दिखाता है और पैसे का दुरूपयोग भी बच जाता है। इस विवरणिका में बहुत ही संक्षिप्त वर्णन है। आशा है कि जिज्ञासु सज्जन इससे प्रेरणा प्राप्त कर, अन्य स्रोतों से विस्तृत जानकारी प्राप्त करने का प्रयास अवश्य करेंगे। इसमें घरेलू औषधीय पौधों के अतिरिक्त सर्वसुलभ विभिन्न मौसमों में उगने वाले व हमेशा मिलने वाले पौधों की सूची देने का अल्प प्रयास किया गया है।

(क) घरेलू औषधीय पौधे


1.Allium Cepa Linn. प्याज

Cholera, Sciatica, Skin Problems, Epileptic Fits etc.
व्रणशोथ, गृध्रसी, योषापस्मार, कास, चर्मरोग, शोथरोग, संधिवात।
2. Allium Sativum Linn. लहसुन
Anti-inflammatory effect in arthritis, anti-bacterial, hypoglycemic, diaphoretic, diuretic, expectorant, effective as ear drops in oil, ear problems, lowers cholesterol and blood pressure anti-coagulant.

3. Elettaria Cardamomum Maton. छोटी इलायची

Stimulant, masticatory, spice, diuretic.
वातहर, शीतल, श्वास-कासहर, हृदय के लिये उत्तम, रोचन, दीपन।

4. Ammomum Subulatum Roxb. बड़ी इलायची

Analgesic, skin problem, boils, carmintive, diuretic, poison antidote, anti-pyretic, removes odour from mouth.

विषघ्न कफ-निःसारक, त्वग् दोषहर, दुर्गन्धनाशन, व्रणरोपण, दीपन, पाचन, अनुलोमन, वेदनास्थापन।

5. Coriandrum Sativum Linn.धनिया

Brain tonic, carminative, digestive, wormicidal, diuretic.
मस्तिष्क के लिये बल्य, रोचन, दीपन, पाचन, कृमिघ्न, मूत्रजनन।

6. Curcuma Longa Linn. हल्दी
Anti-septic, usful in ulcers, wounds, cold, cough, bronchitis, conjunctivitis, liver diseases, sprain, painful oedema.

सर्दी खांसी-जुकाम, चर्मरोगहर, वर्ण्य, विषघ्न, शोथघ्न, चोट आदि में हितकर।

7. Cuminum cyminum Linn. सफेद जीरा Carminative, digestive, anti-flatulent, wormicidal, antipyretic, tonic, diuretic, cardiac & blood disorders.
अरुचि, अग्निमान्द्य, अजीर्ण, ग्रहणी, अर्श कृमि रक्तविकार, मूत्राघात, नवीन व पुराने ज्वरों में हितकारी, बलवर्धक, श्वेतप्रदर।
8. Ocimum Sanctum Linn. Sacred basil. तुलसी
Aromatic, Carminative, Antipyretic, diaphoretic, expectorant.

वातहर, कफहर, ज्वरहर, दीपन, श्वास-कासहर, विषघ्न हृदय के लिये उत्तम।
8. Ocimum Basilicum Linn. Sweet basil. बर्बरी तुलसी
Carminative, cooling, cures kapha and vaata disorders, dyspepsia, cough, constipation, bronchitis, fever etc.

कफवातशामक, अरुचि अग्निमांद्य, हृदय की कमजोरी, रक्तविकार, कास-श्वास कण्डू, कष्टार्तव पत्र तथा मूल विषहर।

10. Piper Nigrum Linn. Black Pepper. काली मिर्च
Alterative, stimulant, carminative, a valuabale gastrointestinal stimulant, stomachic, congestive chills, indigestion, Kasahar, Pitkar.

कफवातजन्य रोगों में हितकर, यकृत्-विकार अजीर्ण अग्निमांद्य प्रतिश्याय, कास-श्वास, रजोरोग, चर्मरोग, शीतज्वर, मूत्रकृच्छ।

11. Zingiber Officinale Rose. Ginger. अदरक
Stimulant, carminative, much valued in atonic dyspepsia and flatulence rub-efacient, relieves headache.

कफवातजन्य विकारों में, वातव्याधि मे, कोष्ठवात, अग्निमांद्य, अरुचि कास-श्वास, हिक्का, प्रतिश्याय, हृदय रोगों में, शोथ, आमवात आदि।

(ख) ग्रीष्म व बरसात ऋतु के पौधे

12. Abelmoschus Esculentus Moench. Lady`s finger. भिण्डी

Nutritious, appetising, laxative, aphrodisiac, useful in chronic dysentery, diffiulty in urination.
पित्तशामक श्लेष्महर, बलदायक, रुचिकर हाजमा बढ़ाने वाली।

13. Abelmoschus Moschatus Medic. Musk Mallow. कस्तूरी भिण्डी
Root and leaves useful in micturition and as aphrodisiac.
कफ पित्त के रोगों में, मुख दुर्गन्धिनाशक, रुचिकर, दीपन, हाजमा करनेवाली, मूत्रल, वृष्य हृदयोत्तेजक।

14. Abrus Precattorius Linn. Crab`s Eye. गुञ्जारित्त

Plant is bitter, emetic, tonic, vermifuge, demulcent, emollient, thermogenic, antihistaminic, antiseptic, aphorodisiac, beneficial for hair, root is emetic, alexiteric, diuretic, tonic, seeds are purgative, emetic aphorodisiac, useful in nervous disorders.

बीज कफवातशामक, पत्र त्रिदोषहर, विशेषतः वात-पित्तशामक, वात व्याधि, पक्षाघात, बाल गिरने में, चर्मरोगों में, बीजों का प्रयोग शुद्ध करके, चौलाई के पत्तों का रस चीनी के साथ खाने से इसके बुरे प्रभाव को ठीक करता है ।

15. Abutilon Indicum Linn. Sweet. अतिबला
Febrifuge, anthelmintic, antiinflammatory, piles, lumbago, convulsion, cramps, consumption, bronchitis.
वातपैत्तिक, विकारों में, व्रणशोथ, नेत्ररोग, पक्षाघात, उरःक्षत, रक्तपित्त, प्रदर, शुक्रमेह, हृद्दौर्बल्य, क्षयरोग, कृशता।

16. Achyranthes Aspera Linn. Pricklychaff. अपामार्ग

Cardiotonic, Carminative, diuretic, ascite, enlargement of cervical glands, piles, urinary diseases, boil etc.
कफवात रोगों में, शोथ वेदनायुक्त विकारों में, गुहेरी, अर्श पित्ताश्मरी हृद्रोग, रक्तविकार, आमवात, शोथ रोग, अश्मरी, चर्मरोग, दौर्बल्य।



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